15 साल से रहने वालों को मिलेगा डोमिसाइल नागरिक का दर्जा, सात साल तक पढ़ने वाले छात्रों को भी मिलेगा स्थाई निवासी होने का हक

 केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लिए नया डोमिसाइल कानून लागू कर दिया है। अब तक जम्मू कश्मीर में डोमिसाइल का कोई प्रावधान नहीं था। इसके संविधान की धारा 35 ए के तहत नागरिकों को परिभाषित किया जाता था। सिविल सर्विसेज (डिसेंट्रियलाइजेशन एंड रिक्रूटमेंट) के तहत 15 साल से कश्मीर में रहने वाले यहां के डोमिसाइल निवासी माने जाएंगे। नए कानून के मुताबिक, यूटी में सात साल तक पढ़ने वाले और 10 वीं और 12 वीं की परीक्षा देने वाले छात्र भी डोमिसाइल माने जाएंगे। 


डोमिसाइल एक ऐसा दर्जा है जो किसी भी राज्य में लोगों को कानूनी तौर पर स्थाई निवासी बनाता है। अगर कोई व्यक्ति किसी राज्य से बाहर चला जाए लेकिन स्थाई तौर पर दूसरे जगह बसने की इच्छा नहीं रखता हो और अपने राज्य से जुड़ा हो तो भी वह डोमिसाइल निवासी माना जाएगा।


कानून में दूसरे राज्यों के लोगों को भी डोमिसाइल का दर्जा देने का प्रावधान


केंद्र सरकार के नए कानून के मुताबिक, केंद्र शासित प्रदेश के राहत और पुनर्वास आयुक्त द्वारा पंजीकृत किए गए दूसरे राज्यों के लोग भी डोमिसाइल नागरिक माने जाएंगे। जम्मू कश्मीर में केंद्र सरकार के विभागों ,पीएसयू, सेंट्रल यूनिवर्सिटी, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और केंद्र से मान्यता प्राप्त शोध संस्थानों में 10 साल तक सेवा देने वाले अधिकारी और उनके बच्चे भी इसके हकदार होंगे। अगर ऐसे बच्चे अपनी नौकरी, व्यापार या पेशेवर कारणों से जम्मू-कश्मीर से बाहर है और उनके माता-पिता कानून के किसी एक मापदंड को पूरा करते है तो भी वे डोमिसाइल माने जाएंगे।


तहसीलदार को डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी करने का अधिकार होगा


नए कानून में किसी भी इलाके के तहसीलदार को डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी करने का अधिकार होगा। पहले भारतीय संसद के कई संवैधानिक फैसले कश्मीर पर लागू नहीं होते थे। जम्मू कश्मीर में अपना संविधान था, जिसके मुताबिक नागरिक को परिभाषित किया गया था। इसमें किसी भी बाहरी व्यक्ति को वहां बसने का हक नहीं था। 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने के जिए जारी नोटिफिकेशन में राष्ट्रपति ने जम्मू-कश्मीर के संविधान सभा का नाम विधानसभा कर दिया था। पहले उसका नाम संविधान सभा इसलिए था, क्योंकि भारत की संसद की तरह ही वह कई संवैधानिक निर्णय करती थी। चाहे संसद में पारित निर्णयों को पारित करने का निर्णय हो, चाहे उसे नामंजूर करने का हो।


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